
कन्हैया कुमार की यात्रा से बिहार कांग्रेस नेतृत्व नाखुश: सूत्रों से खुलासा
कन्हैया कुमार, जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के प्रमुख नेता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र नेता रहे हैं, इन दिनों बिहार के विभिन्न हिस्सों में अपनी राजनीतिक यात्रा पर हैं। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, उनकी इस यात्रा से बिहार कांग्रेस नेतृत्व खुश नहीं है और उनके बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति बन गई है।
सूत्रों के अनुसार, बिहार कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता कन्हैया कुमार की गतिविधियों से नाखुश हैं, खासकर उनकी बढ़ती लोकप्रियता और बिहार की राजनीतिक स्थिति में उनकी बढ़ती भूमिका से। कन्हैया कुमार बिहार से हैं, और उनकी राजनीतिक पहुंच राज्य में काफी बढ़ी है। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि कन्हैया कुमार की गतिविधियां पार्टी की स्थिति को कमजोर कर सकती हैं, जो पहले ही आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रही है।
कन्हैया कुमार ने 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में CPI के टिकट पर चुनाव लड़ा था, भले ही वह जीतने में सफल नहीं रहे, लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी उपस्थिति लगातार बढ़ती जा रही है। उनका हालिया दौरा इसे राज्य में अपनी राजनीतिक स्थिति को और मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन बिहार कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि कन्हैया कुमार का प्रभाव पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कन्हैया कुमार एक प्रभावशाली नेता हैं, लेकिन उनका उभार कांग्रेस पार्टी के आगामी चुनावों में संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। कुछ कांग्रेस नेता यह चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि उनका बढ़ता प्रभाव युवा वोटरों को आकर्षित कर सकता है, खासकर ऐसे समय में जब युवा चुनावों में बदलाव की उम्मीद रखते हैं। कांग्रेस नेतृत्व यह भी मानता है कि उनका बढ़ता प्रभाव भविष्य में गठबंधन के लिए पार्टी की स्थिति को कमजोर कर सकता है।
यह संकट उस समय उभरा है जब बिहार में आगामी चुनावों के लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कांग्रेस, जो बिहार में महागठबंधन का हिस्सा है, अपनी स्थिति बनाए रखने की कोशिश कर रही है, ताकि राजनीतिक लाभ कन्हैया कुमार जैसे उभरते नेताओं के हाथों में न चला जाए। कन्हैया कुमार को उच्च राजनीतिक पद के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है, ऐसे में कांग्रेस के कुछ नेता मानते हैं कि पार्टी को अपनी खुद की स्थिति मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि किसी अन्य पार्टी के नेता को चर्चा का विषय बनने देना चाहिए।
दूसरी ओर, कन्हैया कुमार के समर्थक यह दावा करते हैं कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता बिहार के लिए एक नई ऊर्जा का प्रतीक है और वह युवाओं की आवाज़ हैं, जो मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से असंतुष्ट हैं। उनका मानना है कि कन्हैया कुमार के विचार और दृष्टिकोण बिहार के लिए जरूरी हैं, खासकर शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर।
हालांकि बिहार कांग्रेस के भीतर यह असंतोष अभी शुरुआती स्तर पर है, यह सवाल खड़ा करता है कि बिहार की राजनीतिक स्थिति में उभरते हुए नेताओं जैसे कन्हैया कुमार का भविष्य क्या होगा। क्या कांग्रेस और कन्हैया कुमार के बीच किसी प्रकार का समझौता होगा, या फिर यह तनाव बिहार की राजनीति में एक बड़ी खाई पैदा कर देगा? समय ही बताएगा।
बिहार के अगले चुनावों की तैयारियों के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि कन्हैया कुमार की यात्रा किस दिशा में जाती है और इसका कांग्रेस पार्टी पर क्या असर पड़ता है।
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