
दिल्ली में तीन मंदिरों को गिराने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने की सलाह दी। यह याचिका विशेष अनुरोध पर देर रात दाखिल की गई थी और इसे अगली सुबह सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच के अध्यक्ष जस्टिस विक्रम नाथ ने पहले याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन से कहा कि दोपहर 2 बजे इस मामले की सुनवाई होगी। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि याचिका की प्रति दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के वकील को दी जाए ताकि वे अपना पक्ष रख सकें। हालांकि, इसके बाद जस्टिस विक्रम नाथ ने साथी जजों जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता से विचार-विमर्श किया और फैसला बदलते हुए याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया।
मंदिरों पर कार्रवाई और याचिकाकर्ता की दलील
पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज-2 स्थित तीन मंदिर—पूरबो दिल्ली काली बाड़ी, अमरनाथ मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर के विध्वंस के खिलाफ एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने आपातकालीन स्थिति का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि रात 9 बजे मंदिरों पर नोटिस चिपकाया गया और अगली सुबह भारी पुलिस बल के साथ बुलडोजर दस्ते को तैनात कर दिया गया। वकील ने दलील दी कि जब दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में एक मस्जिद पर बुलडोजर चलाने की बात आई थी, तो सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई करते हुए कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। उन्होंने इसे धार्मिक भेदभाव का मामला बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों को बताया अलग
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और कहा कि दोनों मामलों की परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं। अदालत ने कहा कि जहांगीरपुरी मामले में विशेष परिस्थितियाँ थीं, जबकि यह मामला अलग तरह का है। कोर्ट ने इस विषय पर विस्तार से सुनवाई करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने की सलाह दी।
DDA का पक्ष और विध्वंस का कारण
DDA द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुसार, 25 अक्टूबर 2023 को प्रमुख सचिव (गृह) की अध्यक्षता में धार्मिक समिति की बैठक हुई थी, जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि कानून के अनुसार कार्रवाई करते हुए अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को हटाया जाएगा। इसी आधार पर 20 मार्च 2025 को यह विध्वंस अभियान चलाया गया।
DDA का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से नियमानुसार की जा रही है और इसमें किसी विशेष धर्म या संप्रदाय को लक्षित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण को हटाने की प्रक्रिया वर्षों से जारी है और इसे कानून के अनुसार ही किया जा रहा है।
विवाद और संभावित विरोध
इस मामले को लेकर विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों में आक्रोश देखा जा रहा है। मंदिरों को हटाने के खिलाफ कई हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। वहीं, विपक्षी दलों ने इसे सरकार की दोहरी नीति करार दिया है और आरोप लगाया है कि धार्मिक आधार पर पक्षपात किया जा रहा है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि याचिकाकर्ता दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले को कितनी जल्दी उठाते हैं और हाई कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है।
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