
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के बिहार दौरे के दौरान दिए गए बयान “बिहार के दुर्भाग्य के दिन खत्म होने वाले हैं” ने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। उनके इस बयान को लेकर सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टियों के बीच तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। जहां एक ओर इसे बिहार के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे सियासी मायनों से भी जोड़ा जा रहा है।
भागवत का संदेश – बिहार को आगे बढ़ाना जरूरी
पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह राज्य हमेशा से ज्ञान, संस्कृति और संघर्ष की भूमि रहा है, लेकिन अब इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता को एकजुट होकर अपने भविष्य को संवारने के लिए आगे आना होगा।
राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रियाएं
मोहन भागवत के इस बयान पर बिहार की राजनीति में गर्मागर्मी शुरू हो गई है। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर बिहार अब भी “दुर्भाग्य” से जूझ रहा है, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? राजद और कांग्रेस नेताओं ने इसे भाजपा और एनडीए सरकार की विफलता करार दिया और कहा कि अगर राज्य में अब भी दुर्भाग्य बना हुआ है, तो यह केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करता है।
वहीं, भाजपा और जदयू नेताओं ने मोहन भागवत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि उनका इरादा बिहार के भविष्य को लेकर सकारात्मक संदेश देने का था। भाजपा नेताओं ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बिहार में विकास की गति तेज हुई है और आने वाले समय में राज्य और आगे बढ़ेगा।
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क्या यह चुनावी संकेत है
राजनीतिक विश्लेषक मोहन भागवत के इस बयान को आगामी चुनावों से जोड़कर भी देख रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान बिहार की राजनीति में संभावित बदलाव और गठजोड़ के संकेत हो सकते हैं।
मोहन भागवत के इस बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल तो मचा दी है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका असर आगामी चुनावी रणनीतियों पर कैसे पड़ता है।
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