
दिल्ली विधानसभा में एक ऐतिहासिक क्षण तब देखने को मिला जब आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक अनिल झा ने अपनी मातृभाषा मैथिली में शपथ ली। इस अवसर को और भी खास बना दिया उनके पारंपरिक परिधान – धोती, कुर्ता और पाग ने, जो मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। झा का यह कदम न केवल व्यक्तिगत पहचान को दर्शाता है, बल्कि यह क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है।
मिथिला की पहचान और पारंपरिक पहनावा
मिथिला क्षेत्र भारत और नेपाल में फैला हुआ है और अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां के लोगों की वेशभूषा, खानपान, लोककला, साहित्य और रीति-रिवाज अद्वितीय हैं। पाग, जो अनिल झा ने शपथ ग्रहण के दौरान पहना, मिथिला की गरिमा और पहचान का प्रतीक माना जाता है। यह पारंपरिक सिर पर बांधी जाने वाली पगड़ी है, जिसे विशेष अवसरों और समारोहों में पहना जाता है। बिहार सरकार ने 2017 में ‘पाग’ को मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी थी। झा द्वारा इसे पहनना न केवल उनकी संस्कृति के प्रति गर्व को दर्शाता है, बल्कि एक बड़े स्तर पर क्षेत्रीय पहचानों को सम्मान देने की पहल भी है।
मैथिली भाषा की संवैधानिक मान्यता
मैथिली भारत की प्राचीन भाषाओं में से एक है, जिसकी जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। यह भाषा मुख्य रूप से बिहार और नेपाल में बोली जाती है और इसका साहित्यिक योगदान भी काफी समृद्ध है। 2003 में मैथिली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, जिससे इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। अनिल झा ने विधानसभा में मैथिली भाषा में शपथ लेकर यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय भाषाएं केवल आम लोगों की बातचीत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे प्रशासनिक और विधायी प्रक्रियाओं का भी हिस्सा बन सकती हैं। उनका यह कदम अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी इसी तरह के सम्मान दिलाने की दिशा में प्रेरणा का काम कर सकता है।
राजनीति में क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृति का महत्व
भारतीय राजनीति में अक्सर हिंदी और अंग्रेज़ी का वर्चस्व रहता है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व भी बढ़ रहा है। भारत की विविधता इसकी सबसे बड़ी ताकत है और अनिल झा का यह कदम इसी विविधता का उत्सव मनाने जैसा है। जब कोई विधायक या सांसद अपनी मातृभाषा में शपथ लेता है, तो यह उन लोगों को भी गर्व का अहसास कराता है, जो उस भाषा से जुड़े होते हैं। इससे क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ती है और उनकी स्वीकार्यता को भी बल मिलता है।
झा का यह कदम देश में चल रही क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की मुहिम का भी हिस्सा माना जा सकता है। भारत में कई राज्यों के नेता अपनी मातृभाषा में शपथ लेते रहे हैं, जिससे उनकी भाषा को सम्मान मिलता है। झा ने इस परंपरा को दिल्ली विधानसभा में जारी रखते हुए मैथिली को सम्मान देने का कार्य किया है।
सोशल मीडिया पर सकारात्मक प्रतिक्रिया
झा के इस सांस्कृतिक और भाषाई गौरव प्रदर्शन को सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों ने उनके इस कदम की सराहना की और इसे भारतीय भाषाई विविधता के सम्मान का प्रतीक बताया। कई लोगों ने कहा कि यह पहल अन्य जनप्रतिनिधियों को भी अपनी मातृभाषाओं को गर्व से अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि झा की यह पहल क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है, क्योंकि अक्सर हिंदी और अंग्रेज़ी के आगे अन्य भाषाओं को वह पहचान नहीं मिल पाती जिसकी वे हकदार होती हैं।
मिथिला और राजनीति: एक नई पहचान
मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान बहुत समृद्ध रही है, लेकिन राजनीतिक स्तर पर इसे वह पहचान नहीं मिली जिसकी यह हकदार थी। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में मिथिला की संस्कृति और भाषा को आगे बढ़ाने के कई प्रयास हुए हैं। झा का यह कदम इस दिशा में एक और मजबूत कड़ी जोड़ता है।
दिल्ली जैसे महानगर में मैथिली भाषा में शपथ लेना न केवल बिहार और मिथिला के लोगों को गौरवान्वित करता है, बल्कि यह उन प्रवासी समुदायों को भी जोड़ने का कार्य करता है, जो अपनी मातृभूमि से दूर रहकर भी अपनी भाषा और परंपराओं को जीवित रखना चाहते हैं।
निष्कर्ष: संस्कृति और राजनीति का संगम
अनिल झा द्वारा मैथिली में शपथ लेना और पारंपरिक धोती-कुर्ता व पाग पहनना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान देने की दिशा में एक बड़ा संदेश था। इससे यह भी साबित होता है कि भारतीय राजनीति में भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत प्रयास भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
झा का यह कदम अन्य जनप्रतिनिधियों को भी प्रेरित कर सकता है कि वे अपनी क्षेत्रीय भाषाओं और सांस्कृतिक पहचान को गर्व से अपनाएं। इस पहल से न केवल मैथिली भाषा को सम्मान मिला, बल्कि यह भी दर्शाया गया कि भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय परंपराओं और भाषाओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है।
आशा है कि आने वाले समय में और भी जनप्रतिनिधि अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को इसी तरह गर्व से प्रस्तुत करेंगे, जिससे भारत की भाषाई विविधता और अधिक मजबूत और समृद्ध होगी।
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