
बिहार में डिप्टी कलेक्टर (DCLR) बहाली को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। पटना हाईकोर्ट ने इस बहाली प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं और सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया और सरकार की लापरवाही स्पष्ट रूप से दिख रही है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) और राज्य सरकार के अधिकारियों से जवाब तलब किया।
क्या है पूरा मामला?
बिहार सरकार ने हाल ही में DCLR के पदों पर भर्ती की घोषणा की थी। इस भर्ती को लेकर कई अभ्यर्थियों ने अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने भर्ती प्रक्रिया में कई नियमों का उल्लंघन किया है। आरोप है कि योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर मनमाने तरीके से चयन किया गया है।
याचिका में दावा किया गया कि परीक्षा और साक्षात्कार के दौरान पारदर्शिता नहीं बरती गई। इसके अलावा, मेरिट लिस्ट जारी करने में भी देरी हुई, जिससे उम्मीदवारों के बीच असंतोष फैल गया। कई उम्मीदवारों ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ अयोग्य अभ्यर्थियों को गलत तरीके से चयनित किया गया।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए बिहार सरकार को आड़े हाथों लिया। अदालत ने पूछा कि जब नियम पहले से निर्धारित हैं, तो फिर भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी क्यों हुई? हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब देने को कहा और भर्ती प्रक्रिया की समीक्षा करने के निर्देश दिए।
कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, “सरकार को भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए। योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि इस मामले में अनियमितता पाई जाती है, तो सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।”
सरकार की सफाई
बिहार सरकार ने कोर्ट में अपने पक्ष रखते हुए कहा कि भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से नियमों के तहत की गई थी और सभी योग्य उम्मीदवारों को अवसर दिया गया था। राज्य सरकार ने यह भी दावा किया कि कुछ असंतुष्ट अभ्यर्थी जानबूझकर भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।
BPSC ने भी अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष रही और कोई भी उम्मीदवार बिना मेरिट के चयनित नहीं हुआ। हालांकि, अदालत सरकार और BPSC के जवाब से संतुष्ट नहीं दिखी और मामले की अगली सुनवाई की तारीख निर्धारित कर दी।
अभ्यर्थियों में आक्रोश
DCLR भर्ती प्रक्रिया को लेकर असंतोष जताने वाले उम्मीदवारों में भारी नाराजगी देखी जा रही है। कई उम्मीदवारों ने राज्य सरकार और BPSC के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर सरकार पारदर्शी तरीके से भर्ती नहीं कर सकती, तो ऐसी परीक्षाओं का कोई औचित्य नहीं है।
राजनीतिक हलचल तेज
इस मामले ने राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया है। विपक्षी दलों ने बिहार सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह भर्ती घोटाले का संकेत है। राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “बिहार में नौकरियों की लूट मची हुई है। सरकार अपने चहेतों को नौकरी दे रही है और योग्य उम्मीदवारों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। हाईकोर्ट की फटकार से साफ है कि सरकार की मंशा सही नहीं थी।”
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता साबित होती है, तो सरकार को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। हाईकोर्ट सख्त कार्रवाई कर सकता है और भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने के आदेश दे सकता है।
सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर कई सामाजिक संगठनों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। शिक्षा और रोजगार से जुड़े संगठनों ने सरकार से मांग की है कि भर्ती प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाए और योग्य उम्मीदवारों के साथ न्याय हो।
बिहार युवा संगठन के अध्यक्ष ने कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले और भर्ती प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए। अगर योग्य उम्मीदवारों को न्याय नहीं मिला, तो हम आंदोलन तेज करेंगे।”
निष्कर्ष
DCLR भर्ती विवाद ने बिहार सरकार की भर्ती प्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। कोर्ट की सख्ती से यह साफ हो गया है कि सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता को लेकर अब कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उम्मीदवारों और विपक्षी दलों की नाराजगी को देखते हुए यह मामला आने वाले दिनों में और तूल पकड़ सकता है।
सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द इस मामले में पारदर्शिता लाए और भर्ती प्रक्रिया को न्यायोचित तरीके से पूरा करे। अगर सरकार इस मामले को हल्के में लेती है, तो यह मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा राजनीतिक विवाद भी बन सकता है
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